Sunday, December 9, 2012

तृप्ती के संग परिणय बंधन दिवस के शुभावसर पर समर्पित

 तृप्ती  के संग परिणय बंधन दिवस के शुभावसर पर समर्पित

हसीन सपने संजोये जो हमने
खुदा ने तुम्हे हकीकत बना भेजा

जी रहे थे हम पतझर में जैसे तैसे
तुम्हे फूलों  का गुलिस्ता बना भेजा

हवा के झोंके भी कहाँ  थे, लगा  कि  अब दम निकलेगा
उसने तो तुम्हे मधुर बहार बना भेजा

जीने की ललक भी नहीं बची थी दिल में 
खुदा ने तुम्हे मेरी दिलरुबा बना भेजा

जी रहा हूँ मैं, चहक रहा हूँ मैं , महक रहा हूँ मैं
तृप्ति से मिल रही है  तृप्ति  की, जिए जा रहा हूँ मैं

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