परिणय बंधन के पच्चीस वर्ष पुरे हो रहे है आज मेरी तृप्ती के संग।  समय कैसे गुजरा  मालूम ही नहीं चल पाया।  अभी भी यह लग रहा है की कल परसो की ही तो बात थी, मगर समयचक्र है की बता रहा है हमने पच्चीस वर्ष  वैवाहिक जीवन के पुरे कर लिए अपने अपने माता पिता के आशीर्वाद से।   अपने बेटे प्रणीत के स्नेह के संग।  
मुझे किसी की पंक्तिया याद आ रही है "तलब वालो से बेहतर रहा हूँ , मुझे हर चीज़  बेमांगे मिली है ". बचपन से ही जिसके संग स्कूल में पढ़े खेले वही जीवन संगिनी बन जाये इससे ज्यादा ख़ुशक़िस्मती क्या होंगी।  बचपन में ही जिसने दिल पर जादू कर दिया वह कॉलेज से लेकर अब तलक मेरी राह की हमसफ़र है. बस ईश्वर से यही ख्वाहिश कि इस जन्म तूने मुझ पर जो उपकार किया वह सात जन्मों  और उससे भी आगे हो तो अति उत्तम ऐसा ही उपकार करे. 
कवि तो हूँ नहीं पर कुछ न कुछ कभी कभी लिखते रहने का शौक है अपने दिल में आये कुछ ख़यालो  को शब्द देने का प्रयास मात्र है ……… 
आज फिर कुछ अमिट पल याद आये …
स्वर्णिम पल था जीवन में तुम्हारा यूँ आने का 
और मुझे और मेरी जिंदगी को थामने का
मिले तो बचपन में थे पहली बार स्कूल में खेले संग संग वह पल भी याद है
कॉलेज के दिन भी भुलाये न भूले जायेंगे
दिल में घर तो तुमने बचपन में ही कर लिया
हाथ चाहे बाद में थाम जीवन मेरा गुलजार किया 
परिणय बंधन से जिंदगी की हुई शुरू नयी डगर
नई डगर पर हमराही बनी तुम जीवन साथी बन 
जीवन की उहा पोह / उठा पटक में 
राह  दिखाई संज़ीदगी  से तुमने मुझे 
थामे रखना हाथ मेरा इस जिंदगी में 
की सफर पूरा हो हमसफ़र के संग 
अगले जन्म रखना खाली अपना हाथ  
कि फिर से प्रिय थाम सको मेरा हाथ 
खुश  हूँ  ईश्वर और तेरी सृष्टि से 
कि  तृप्त हूँ अपनी तृप्ती  से 

 
सिल्बर जुबली की हार्दिक मंगलकामनएं ..
ReplyDeleteयूँ ही खुशियों भरा आँगन महकता रहे साथ-साथ ...