जीने का मसला मालूम नहीं
जीने की चाह फिर भी है
क्या कर लिया
क्या कर लेंगे , कुछ पता नहीं
फिर भी हर शाम सुबह का इंतजार रहता है
दर्द लिए रात करवटे बदलता रहा
सुबह कम होगा शायद इस चाह में
सुबह सलवटे थी चद्दर पर
दिल में दर्द गहराया था
फिर भी जीने की चाह ने
सुबह का सूरज दिखा दिया
देखे कई चेहरे मुस्कराते
अपना दर्द कफ़न किया
मुस्कराने लगा में भी
यह समझ कि सबने अपना दर्द कफ़न किया
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ...........मनमोहक
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