पहले दामिनी फिर गुडिया ........
आज संसद का बजट सत्र फिर से शुरू होने वाला है
हंगामे की स्टोरी अब टी वी पर खूब चलेगी . वक्तव्यों की बहार आएगी। हर बार
की तरह फिर दोषारोपण होगा.
पहले दामिनी फिर गुडिया पर हैवानियत का हमला हुआ। दामिनी ने देश को एक मुद्दे पर चेतन किया .इस बार गुडिया ने फिर से देश को झकझोरा है. दिल्ली पुलिस के दो हज़ार रूपये के मसले से फिर उफान आया . दिल्ली की सडको पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था. पुलिस ने रफा दफा करने का सुझाव नहीं दिया होता तो दिल्ली की सड़के गुस्से का इज़हार नहीं कर पाती। एक पुलिस अधिकारी ने दो तमाचे न झड़े होते तो बवाल न मचता . दिल्ली से शुरू हुआ गुस्सा देश के कई अन्य स्थानों पर भी देखने को मिला।
आज की इस भागम दौड़ में भी सामाजिक सरोकार से समाज का जुड़ा होना हमारी पुरातन सामाजिक व्यवस्था का ही परिणाम है। यह निसन्देह प्रशंसनीय है.
पहले दामिनी फिर गुडिया पर हैवानियत का हमला हुआ। दामिनी ने देश को एक मुद्दे पर चेतन किया .इस बार गुडिया ने फिर से देश को झकझोरा है. दिल्ली पुलिस के दो हज़ार रूपये के मसले से फिर उफान आया . दिल्ली की सडको पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था. पुलिस ने रफा दफा करने का सुझाव नहीं दिया होता तो दिल्ली की सड़के गुस्से का इज़हार नहीं कर पाती। एक पुलिस अधिकारी ने दो तमाचे न झड़े होते तो बवाल न मचता . दिल्ली से शुरू हुआ गुस्सा देश के कई अन्य स्थानों पर भी देखने को मिला।
आज की इस भागम दौड़ में भी सामाजिक सरोकार से समाज का जुड़ा होना हमारी पुरातन सामाजिक व्यवस्था का ही परिणाम है। यह निसन्देह प्रशंसनीय है.
देश में कई स्थानों पर इंसानियत की हैवानियत की खबरे आये दिन सुनने या पढने में आती है. जाहिर है जनता का गुस्सा व्यवस्था के प्रति रहेगा . जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तो व्यवस्था की ही है और व्यवस्था पुलिस विभाग और उनके आका सरकार के पास ही तो है. इसलिए जनता का गुस्सा सीधा सरकार पर निकलेगा उसमे कोई दो राय नहीं है. इसीलिए दस जनपथ , इण्डिया गेट इत्यादि पर गुस्सा दिखाई दे रहा था .
कुछ विषयों पर गंभीरता से चिंतन करना आवश्यक लगता है .
पुलिसकर्मियों के कार्यो में राजनितिक हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं होना चाहिये. न तो चयन प्रक्रिया में न पोस्टिंग में . राजनितिक हस्तक्षेप से व्यवस्था गड़बड़ा जाती है. ईमानदार और बिना रसुकात के पुलिसकर्मी और अधिकारी सही ढंग से कार्य निष्पादन नहीं कर पाते और वही से समस्या शुरू हो जाती है.
दूसरा, इन घटनाओ का बहुतायत में होने का कारण ? ऐसी कौनसे कारण है जिनसे यह घटनाये बहुतायत में घटती जा रही है. चारित्रिक पतन का क्या कारण है ? सामाजिक ताना बाना क्योंकर छिन्न भिन्न होता जा रहा है ? रिश्ते तार तार क्यों होते जा रहे है ?
इस
विषय पर चर्चा हो रही थी तब इक विषय आया आज की फिल्मे भी इसका एक कारण है
? स्तरहीन फिल्मो और स्तरहीन आइटम सॉंग से तो गड़बड़ नहीं हो रही है कही।
बेतुके गाने और उसपर ठुमके और न जाने कैसी कैसी भाव भंगिमा भरे सेक्सी
नृत्य यह भी एक मुख्य कारण लगता है मुझे, हो सकता है आप इससे सहमत नहीं
होंगे. सामाजिक विज्ञानी ही अच्छी तरह से बतला सकते है। अब उनका दायित्व
बढ़ जो गया है.
विज्ञापनों में अश्लीलता बढती जा रही है . विज्ञापन पुरुष के अंडरवियर का और विज्ञापन में स्त्री का दुरूपयोग पुरुष के शरीर पर बहुत सारे गुलाबी चुम्बन के निशान, किसी परफ्यूम के विज्ञापन में भी ऐसा कुछ की लगाते ही आपकी और खिची चली आएगी लड़किया . किधर ले जा रहा है यह सब हमारे समाज को . कही पर कुछ तो लगाम लगाओ .
व्यवस्था पर गुस्से में आई जनता से करबद्ध प्रार्थना की आप जो कर रहे है वो ठीक है मगर सामाजिक ताने बाने को भी मजबूत करने हेतु संचार माध्यमो तथा फिल्मो में बढती अश्लीलता पर भी तुरंत लगाम लगाने के लिए आवाज़ उठाये .
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