तृप्ती के संग परिणय बंधन दिवस के शुभावसर पर समर्पित
हसीन सपने संजोये जो हमने
खुदा ने तुम्हे हकीकत बना भेजा
जी रहे थे हम पतझर में जैसे तैसे
तुम्हे फूलों का गुलिस्ता बना भेजा
हवा के झोंके भी कहाँ थे, लगा कि अब दम निकलेगा
उसने तो तुम्हे मधुर बहार बना भेजा
जीने की ललक भी नहीं बची थी दिल में
खुदा ने तुम्हे मेरी दिलरुबा बना भेजा
जी रहा हूँ मैं, चहक रहा हूँ मैं , महक रहा हूँ मैं
तृप्ति से मिल रही है तृप्ति की, जिए जा रहा हूँ मैं
हसीन सपने संजोये जो हमने
खुदा ने तुम्हे हकीकत बना भेजा
जी रहे थे हम पतझर में जैसे तैसे
तुम्हे फूलों का गुलिस्ता बना भेजा
हवा के झोंके भी कहाँ थे, लगा कि अब दम निकलेगा
उसने तो तुम्हे मधुर बहार बना भेजा
जीने की ललक भी नहीं बची थी दिल में
खुदा ने तुम्हे मेरी दिलरुबा बना भेजा
जी रहा हूँ मैं, चहक रहा हूँ मैं , महक रहा हूँ मैं
तृप्ति से मिल रही है तृप्ति की, जिए जा रहा हूँ मैं
बेहतर लेखन !!!
ReplyDeleteNice gift to your Tripty!
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