Monday, November 12, 2012

उल्लू ...........



उल्लू 
तुम वाकई उल्लू ही हो 

मैं मुगालते में था  कि 
रात तुम्हे फुटपाथ पर सोते आदमी दिखते  होंगे 
मुझे लगता था की 
रात को भूखे पेट  बिलखते बच्चे नज़र आते होंगे 
मैं सोचता था कि 
रात तुझे करवट बदलती माँ नज़र आती होगी 
मुझे लगता था कि 
रात बारिश को तकते किसान नज़र आते होंगे 
मुझे ख्याल था कि 
कल की मजदूरी की चिन्ता में सो नहीं पाने 

वाला मजदुर नज़र आता होगा 

उल्लू तुम वाकई, उल्लू  तो नहीं हो 
उल्लू तो तुमने हमें बना रखा है 

तभी तो लक्ष्मी को लेकर
सफेदपोश की और जाते हो तुम 
बड़ी कोठिया ही नजर आती है तुम्हे 

उल्लू तुम्हे भी अब उसी नज़र का चस्मा लगा है 
जिस नेता की नज़र मेरे  देश पर लगी  है 

उल्लू तुम अपना उल्लू सीधा कर रहे हो 
और देश के ठेकेदार अपना उल्लू सीधा करने में लगे है 

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